सुधार या राजनीति (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की)
किस वजह से आर्थिक पैकेज में कृषि की शुरुआत की ? :-
पहला- एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रकर फंड बनाने और दूसरा- एग्रीकल्चर मार्केटिंग रिफार्स को लागू करना। लेकिन इन सबके बावजूद अगर सीधे तौर पर देखा जाए तो इस आर्थिक पैकेज में कृषि पैकेज के नाम पर सरकार ने जो घोषणाएं की हैं किसानों या कृषि को कोई विशेष वित्तीय राहत नहीं दी गई। कृषि उत्पादों की मार्केटिंग के लिए केंद्रीय कानून लाना और आवश्यक वस्तु अधिनियम में बड़े बदलाव की बात कही गई है। यहां यह कहना जरूरी है कि जो लोग समझ रहे हैं कि केंद्रीय कानून एग्रीकल्चर प्रॉड्यूस मार्केट कमेटी (एपीएमसी) एक्ट को समाप्त कर देगा, उन्हें अपने फैक्ट चैक कर लेने चाहिए क्योंकि यह राज्यों के अधिकार में है और उसका पक्ष होना लगभग असंभव है।
दूसरा, आवश्यक वस्तु अधिनियम एक ऐसा कानून है जिसमें पिछले तीन दशकों से सुधार चल रहे हैं। इसलिए अब इस आगे कैसे बढ़ा जाएगा यह देखना काफी महत्वपूर्ण होगा। पहली बात उन मार्केटिंग सुधारों की जिनको क्रांतिकारी माना जा रहा है। केंद्र सरकार कृषि उत्पादों के बीजज्यीय (इंटर स्टेट) और राज्य के भीतर (इंट्रा स्टेट) मार्केटिंग में बदलाव के लिए एक केंद्रीय कानून लाएगी जो किसानों को प्रतिबंधों और व्यापार बाधाओं से मुक्त कर देगी। मूलतः में इस सुधार को लेकर केंद्र सरकार बहुत गंभीर है और उसके नेतृत्व में पिछले कुछ मामलों के दौरान कृषि मंत्रालय, गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय में काफी मंथन हुआ। इस मैराथन मंथन के बाद ही नया कानून लाने की बात तय हुई। इसके पहले राज्यों को कहा गया कि वह एपीएमसी कानून में सुधार करें, जिसे शुरू में किसी भी राज्य ने नहीं माना है। लेकिन शुरूआती हीला - हवाली के बाद भाजपा शासित गुजरात और कर्नाटक ने इसमें सुधार की शुरूआत कर दी। सूत्रों के मुताबिक इसके पीछे काफी हद तक गृह मंत्रालय की भूमिका है।
नए प्रस्तावित कानून को, संविधान के सातवें शेड्यूल के तहत राज्यों के आयतम नंबर 14 के तहत कृषि राज्यों का विषय है:-
अब बात करें नए प्रस्तावित कानून को, संविधान के सातवें शेड्यूल के तहत राज्यों के आयतम नंबर 14 के तहत कृषि राज्यों का विषय है, और राज्य के भीतर कृषि विपणन राज्यों के अधिकार क्षेत्र में है। इसलिए केंद्रीय कानून के बावजूद एपीएमसी के बनाए रहने की पूरी संभावना है क्योंकि राज्य सरकारें और खासतौर से गैर - भाजपा सरकार इस पर केंद्र के विरोध में आएगी, यह लगभग तय है। हालांकि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार काफी सोच - समझ कर आगे बढ़ रही है और इस कानून को लेकर लगातार विधि मंत्रालय से राय ली गई। केंद्र सरकार का मानना है कि कृषि जिन्सों के मार्केटिंग राज्यों का अधिकार है लेकिन इस व्यवस्था में वह कानून लागू कर सकता है।
अधिकारियों का मानना है कि कनकरट लिस्ट की एंट्री 22 और 42 में केंद्र के लिए सहायक हो सकते हैं। हालांकि शुरुआती चर्चा में विधि मंत्रालय की राय के बिना ही इस पर आगे बढ़ने की बात चली गई, लेकिन बाद में उसकी राय लेने का फैसला लिया गया। कुछ मुद्दों पर विधि मंत्रालय की राय बहुत स्पष्ट नहीं हो रही है, हालांकि संजयीय मार्केटिंग को लेकर केंद्र का अधिकार स्पष्ट है। साथ ही यह देखना होगा कि DRM और ट्रेड की कितनी अलग - अलग व्याख्या की जाती है। एक पक्ष यह भी है कि एपीएमसी का ज्युरिदिक्षन (कैचमेंट एरिया) मंडी की सीमा में ही है, इसके बाहर केंद्र का कानून काम कर सकता है। लेकिन एपीएमसी के तहत मंडी का मतलब केवल मंडी वार्ड की चारदीवारी नहीं होती है,बल्कि एक कॉम्पैक्ट क्षेत्र होता है।
ये सभी मसल्स को देखते हुए मुद्दा काफी पेचीदा है। इसलिए कानून के आने का इंतजार करना चाहिए, लेकिन यह तय है कि जब इस कानून पर बात आगे बढ़ेगी तो यह बड़ा राजनीतिक विवाद का मुद्दा बनेगा। वैसे कृषि जिनोंसों के बीजज्यीय व्यापार को मुक्त करना किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। वे भी हा एक देश, एक बाजारहके पात्र हैं क्योंकि उनके लिए राज्यों की सीमाएं कई बार आंतरिक सीमाओं की तरह बाधाएं बनकर खड़ी हो जाती हैं, जो किसानों के शोषण का कारण बनती हैं।
अब बात दूसरे बड़े सुधार की, जिसमें आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन की बात कही गई है। यह बात सही है कि यह कानून उपलब्धता के संकट के दिनों के लिए बना था और अब ज्यादातर कृषि उत्पादों के मामले में आधिक्य की स्थिति है और उनकी मांग व बाजार की दरकार है। इसी तरह बड़े सुधार एचडी देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान शुरू हुए थे और इसके दायरे से दर्जनों उत्पादों को बाहर कर दिया गया था। लेकिन कुछ महीने पहले तक इसका उपयोग हुआ क्योंकि केंद्र सरकार महंगाई पर अंकुश के लिए स्टॉक सीमा इसी कानून के तहत तय करती है। ऐसा नहीं है, कुछ महीने पहले प्याज के दाम बढ़ने पर प्याज का भंडार रखने वाले किसानों और कारोबारियों पर आय कर के छापे भी गए थे।
इसके अधिकांश प्रावधानों को समाप्त करने की बात सरकार कह रही है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक नरेंद्र मोदी के दूसरे बार सत्ता में आने के समय से ही इस पर मंथन चल रहा था। अब कोविड -19 परिस्थिति के समय इस पर फैसला लेने की घड़ी आई तो यह संयोग ही कहा जा सकता है। वैसे सरकार अगर अपनी घोषणा के तहत कदम उठाती भी है तो यह देखना दिलचस्प होगा कि प्याज, आलू, तिलहन और दालों के मामले में वह जरूरत पड़ने पर दोबारा लागू करने का लालच छोड़ पाती है या नहीं, क्योंकि ये ऐसे उत्पाद हैं जिनके एक फसल कमजोर होने पर कीमतों में भारी तेजी की आशंका बनी रहती है।
ऐसे में महंगाई के लक्षित स्तर को बरकरार रखने के साथ ही राजनीतिक नुकसान से बचने के लिए इस कानून के प्रावधानों को लागू करने का मोह सरकार आसानी से नहीं छोड़ पाएगी। कृषि क्षेत्र के इन प्रस्तावित सुधारों को 1991 के आर्थिक सुधारों के अनुसार भी कहा जा रहा है, लेकिन यह केवल संभव है जब इसके सभी प्रावधान सफलतापूर्वक लागू किए जाएं, अब बात राहत पैकेज की करें, तो सरकार ने 14 मई को कृषि ऋण से जुड़ी कई घोषणाएँ।
किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से मिलने वाली सस्ते फसली कर्ज का आकार बढ़ाने और उसके तहत लगभग 2.5 करोड़ अतिरिक्त किसानों को लाने की बात है। यानी इसमें समिट का कोई वित्तीय लाभ नहीं है। उसी तरह 15 मई को घोषित पैकेज में तमाम केंद्रीय योजनाओं (केंद्र) और केंद्रीय मदद वाली योजनाओं (सीएसएस) से जुड़े प्रावधानों का ही दोहराव किया गया या फिर उनका दुआर बढ़ाने की बात कही।
इसी तरह पशुपालन और दान, मत्स्य पालन, और खाद्य पदार्थ मंत्रालयों की योजनाओं को इसका हिस्सा बनाया गया जिसमें से अधिकांश कई साल से चल रहे हैं और कुछनये साल के बजट में घोषित की गई थीं। ऐसा लग रहा था जैसे वित्त मंत्री एक बार फिर बजट पेश कर रहे हैं। समाचार माध्यमों को भी इन आंकड़ों पर समाचार बनाने से पहले कुछ क्रिसर्च कर लेनी चाहिए थी। मसलन डेरा इंफ्रास्ट्रकर डेवलपमेंट फंड (डीएसएफ) दो साल से है और इसका आकार दस हजार करोड़ रुपये है। इसके तहत एनसीडीसी, नाबार्ड और बैंक ऑफ बड़ौदा सहकारी डेरा यूनियन, फेडरेशन और निजी डेरी कंपनियों को सस्ता कर्ज देते हैं। इस पर सरकार जोदायी है वह पांच साल में लगभग 1,200 करोड़ रुपये ही बैठेगी। इसमें और अधिक कर्ज दिया जाएगा तो सरकार कुछ सौ करोड़ की सब्सिडी और जोड़ देगी, इससे बहुत कुछ होगा।
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अधिकारियों का मानना है कि कनकरट लिस्ट की एंट्री 22 और 42 में केंद्र के लिए सहायक हो सकते हैं। हालांकि शुरुआती चर्चा में विधि मंत्रालय की राय के बिना ही इस पर आगे बढ़ने की बात चली गई, लेकिन बाद में उसकी राय लेने का फैसला लिया गया। कुछ मुद्दों पर विधि मंत्रालय की राय बहुत स्पष्ट नहीं हो रही है, हालांकि संजयीय मार्केटिंग को लेकर केंद्र का अधिकार स्पष्ट है। साथ ही यह देखना होगा कि DRM और ट्रेड की कितनी अलग - अलग व्याख्या की जाती है। एक पक्ष यह भी है कि एपीएमसी का ज्युरिदिक्षन (कैचमेंट एरिया) मंडी की सीमा में ही है, इसके बाहर केंद्र का कानून काम कर सकता है। लेकिन एपीएमसी के तहत मंडी का मतलब केवल मंडी वार्ड की चारदीवारी नहीं होती है,बल्कि एक कॉम्पैक्ट क्षेत्र होता है।
ये सभी मसल्स को देखते हुए मुद्दा काफी पेचीदा है। इसलिए कानून के आने का इंतजार करना चाहिए, लेकिन यह तय है कि जब इस कानून पर बात आगे बढ़ेगी तो यह बड़ा राजनीतिक विवाद का मुद्दा बनेगा। वैसे कृषि जिनोंसों के बीजज्यीय व्यापार को मुक्त करना किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। वे भी हा एक देश, एक बाजारहके पात्र हैं क्योंकि उनके लिए राज्यों की सीमाएं कई बार आंतरिक सीमाओं की तरह बाधाएं बनकर खड़ी हो जाती हैं, जो किसानों के शोषण का कारण बनती हैं।
बात दूसरे बड़े सुधार की:-
इसके अधिकांश प्रावधानों को समाप्त करने की बात सरकार कह रही है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक नरेंद्र मोदी के दूसरे बार सत्ता में आने के समय से ही इस पर मंथन चल रहा था। अब कोविड -19 परिस्थिति के समय इस पर फैसला लेने की घड़ी आई तो यह संयोग ही कहा जा सकता है। वैसे सरकार अगर अपनी घोषणा के तहत कदम उठाती भी है तो यह देखना दिलचस्प होगा कि प्याज, आलू, तिलहन और दालों के मामले में वह जरूरत पड़ने पर दोबारा लागू करने का लालच छोड़ पाती है या नहीं, क्योंकि ये ऐसे उत्पाद हैं जिनके एक फसल कमजोर होने पर कीमतों में भारी तेजी की आशंका बनी रहती है।
ऐसे में महंगाई के लक्षित स्तर को बरकरार रखने के साथ ही राजनीतिक नुकसान से बचने के लिए इस कानून के प्रावधानों को लागू करने का मोह सरकार आसानी से नहीं छोड़ पाएगी। कृषि क्षेत्र के इन प्रस्तावित सुधारों को 1991 के आर्थिक सुधारों के अनुसार भी कहा जा रहा है, लेकिन यह केवल संभव है जब इसके सभी प्रावधान सफलतापूर्वक लागू किए जाएं, अब बात राहत पैकेज की करें, तो सरकार ने 14 मई को कृषि ऋण से जुड़ी कई घोषणाएँ।
किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से मिलने वाली सस्ते फसली कर्ज का आकार बढ़ाने और उसके तहत लगभग 2.5 करोड़ अतिरिक्त किसानों को लाने की बात है। यानी इसमें समिट का कोई वित्तीय लाभ नहीं है। उसी तरह 15 मई को घोषित पैकेज में तमाम केंद्रीय योजनाओं (केंद्र) और केंद्रीय मदद वाली योजनाओं (सीएसएस) से जुड़े प्रावधानों का ही दोहराव किया गया या फिर उनका दुआर बढ़ाने की बात कही।
ऋण दो केंद्रीय बिंदु:-
यानी निवेश और ऋण दो केंद्रीय बिंदु इस पैकेज में हैं। केंद्र सरकार कुल 160 योजनाएं कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत चलाती है। इसे मंत्रालय के बजटीय दस्तावेजों में देखा जा सकता है, जिन पर एक लाख 40 हजार करोड़ रुपये से अधिक के खर्च का प्रावधान है। इन सबसे अधिक 75 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान प्रधानमंत्री किसान कल्याण निधि के लिए है। किसानों को सस्ते ब्याज पर मिलने वाले कर्ज की तय 21,175 करोड़ रुपये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए 15,695 करोड़ रुपये का प्रावधान है। जिस प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से हर खेत को पानी मिलने वाला है उसके लिए केवल चार हजार करोड़ रुपये का प्रावधान है। बाकी योजनाओं के लिए 3,700 करोड़ रुपये से लेकर 500 करोड़ रुपये तक के प्रावधान हैं। यहाँ यह जानकारी इसलिए देना आवश्यक है क्योंकि वित्त मंत्री ने पैकेज का आकार बताते हुए इन योजनाओं से जुड़े तमाम आंकड़े गिनाए हैं। उन्होंने रबी सीजन में गेहूं और दूसरी आरबीबी फसलों की खरीद के जरिये किसानों को 74,300 करोड़ रुपये का जिक्र भी किया। अब फसलें तो हर साल बिकती हैं, इसका कोविड से क्या लेना - देना।पशुपालन और दान, मत्स्य पालन, और खाद्य पदार्थ मंत्रालयों की योजनाओं:-
पैकेज को कितने में विभाजित किया :-
इस पैकेज को को विभाजित पैकेज मानने के पहले बजट दस्तावेजों को पढ़ना चाहिए, तभी पता चलेगा कि यह नया है या इनक्रीमेंटल प्रावधानों का पैकेज है। हां, कृषि ऋण के भुगतान के लिए 31 मई तक का समय देना और उस पर किसी तरह की पेनल्टी के बिना सस्ती ब्याज दरों पर भुगतान की छूट ही सबसे बड़ी सीधी राहत है। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि भारतीय कृषि पहले से ही आईसीयू में है। इस कोविड 19 के दौर में अगर उसे सीधा - सीधा राहत नहीं मिली तो फिर आत्मनिर्भर भारत के कृषि को स्वनिर्भर बनाना संभव नहीं होगा। उपरोक्त दो सुधारों से बात बनने वाली नहीं है। अगर भारतीय कृषि को आत्मनिर्भर बनाना है तो नए सिरे से वर्तमान हालात के मद्देनजर समूल नए कृषि नीति को प्रतिपादित करना होगा। केवल कृषि और किसानों का उद्धार संभव है ।।आर्थिक पैकेज में कृषि,आर्थिक पैकेज की तीसरी किस्त : कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों के लिए 11 बड़े एलान!
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