बंजर भूमि एटलस -2019 ( Wastelands Atlas - 2019 ) : प्रमुख तथ्य

 बंजर भूमि एटलस -2019 ( Wastelands Atlas - 2019 ) : प्रमुख तथ्य


 भारत पर्यावरणीय तथा भौगोलिक रूप से विविधताओं वाला देश है जिसके चलते यहाँ के विभिन्न क्षेत्रों की भूमि परतों में भी काफी विभिन्नताएं पाई जाती है , भू आधार पर भारत में भू राजस्व के अभिलेख ' के अन्तर्गत भूमि का वर्गीकरण मुख्यत निम्न प्रकार से किया जाता है 

( 1 ) वनों के अधीन क्षेत्र , 

( 2 ) गैर - कृषि कार्यों (काम) में प्रयुक्त भूमि ,

 ( 3 ) स्थायी चारागाह क्षेत्र ,

 ( 4 ) विविध वन फसलों तथा बाग - बगीचों अन्तर्गतक्षेत्र ,

 ( 5 ) व्यर्थ तथा बंजर भूमि तथा 

( 6 ) कृषि योग्य व्यर्थ भूमि . 

• देश में बंजर भूमि से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सूचना देने तथा आँकड़ों ( डेटाबेस ) की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु 5 नवम्बर , 2019 को केन्द्रीय ग्रामीण विकास मन्त्री नरेन्द्र सिंह तोमर द्वारा भारत का बजर भूमि एटलस -2019 ( Wastelands Atlas of India ) के 5 वें संस्करण को जारी किया गया . यह एटलस भारत के ' ग्रामीण विकास मन्त्रालय ( भारत सरकार ) के भूमि संसाधन विभाग द्वारा भारत के अन्तरिक्ष विभाग के अन्तर्गत कार्यरत् ' राष्ट्रीय सुदूर संवेदन ( ( National Remote Sensing Centre - NRSC ) के सहयोग से तैयार करके जारी किया गया

 • बंजर भूमि की अद्यतन जानकारी एवं आँकड़ों पर आधारित एटलस का यह 5 वौं संस्करण था गौरतलब है कि इससे पूर्व वर्ष 2000 , 2005 , 2010 तथा 2011 में भी ' बंजर भूमि एटलस ' जारी किया गया था

•" बंजर भूमि ' ( Wasteland ) किसे कहते हैं और होती क्या है ?

 प्रचलित परिभाषा के मुताबिक बजर भूमि वह भूमि होती है जिसे प्रचलित या पारम्परिक प्रौद्योगिकी एवं विधियों से कृषि योग्य नहीं बनाया जा सकता . इसके अन्तर्गत ऊबड़ - खाबड़ , पथरीली , चट्टानी , पहाड़ी तथा मरुस्थलीय भू भाग एवं खड्डों या गड्डों को शामिल किया जा सकता है दक्षिण भारतीय समुद्र तटीय क्षेत्रों में लवणीय भूमि होने के कारण इसमें उत्पादन की सम्भावना बेहद कम होती है , अतः इसे भी बजर भूमि के अन्तर्गत ही शामिल किया जाता है , इस भूमि में भले ही कृषि उपज नहीं होती हो , मगर चरागाह , घास वनस्पति क्षेत्र सहित कुछ कार्यों में इसका उपयोग किया जा सकता है . दरअसल ' बजर भूमि को सार्वजनिक भूमि माना जाता है जिसे व्यक्तिगत तौर पर खरीदा या बेचा नहीं जा सकता . सिर्फ इसे सार्वजनिक कार्यों के लिए उपयोग में लाया जा सकता है

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बंजर भूमि एटलस -2019 :
 प्रमुख तथ्य 

• भारत दुनिया के 2-4 % भू - भाग तथा 17.5 % आबादी का प्रतिनिधित्व करता है जहाँ बंजर भूमि की अधिकता बेहद चिंता का विषय है , भारत में कृषि भूमि की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 0-12 हेक्टेयर है , जो दुनिया में प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की उपलब्धता 0-29 हेक्टेयर से काफी कम है , ऐसी स्थिति में देश में भूमि पर उसकी वहन करने की क्षमता से अधिक दबाव के कारण भूमि का अवकर्षण ' ( Degradation of Lands ) हो रहा है , इसलिए बंजर भूमि के बारे में सुदृढ़ भूस्थानिक सूचना ( जोकि बंजर भूमि एटलस के माध्यम से दी जाती है ) महत्वपूर्ण तथा आवश्यक समझी जाती है और विविध भू विकास योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से बंजर भूमि को उत्पादन सम्बन्धी उपयोग में परिवर्तित करने में प्रभावी रूप से सहायता प्रदान करती है 

• एटलस मानचित्रण सहित बंजर भूमि की विभिन्न श्रेणियों के जिले और राज्यवार विभाजन प्रदान करती है , इसमें जम्मू कश्मीर के अब तक सर्वेक्षण नहीं किए गए 12-08 मिलियन हेक्टेयर ( 120.80 लाख हेक्टेयर ) क्षेत्र को बंजर भूमि में शामिल किया गया है . 

• एटलस में मुख्यतः इसका आकलन या सर्वेक्षण प्रस्तुत किया गया है कि वास्तव में वर्ष 2008-09 से वर्ष 2015 16 के बीच बंजर भूमि में क्या परिवर्तन आए हैं ?


• एटलस के मुताबिक विगत कुछ वर्षों से भारत में बंजर भूमि में कुछ कमी आई है वर्ष 2008-09 में बंजर भूमि की स्थानिक सीमा का आकलन 56-60 मिलियन हेक्टेयर ( 566 लाख हेक्टेयर ) भौगोलिक क्षेत्र ( देश का 17.21 % भौगोलिक क्षेत्र ) था , जो वर्ष 2015-16 में थोड़ा कम अर्थात् 55-76 मिलियन ( देश का 16-96 % भौगोलिक क्षेत्र ) हेक्टेयर हो गया अर्थात् इस अवधि ( 7 वर्षों में ) के दौरान ( 56-60-55.76 ) = 0.84 मिलियन हेक्टेयर ( 0-26 % ) देश में मौजूद विभिन्न बंजर भूमि श्रेणियों का विशुद्ध रूप से रूपान्तरण किया गया , जबकि इस अवधि के दौरान लगभग 1-45 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को ' गैर बंजर भूमि की श्रेणियों में परिवर्तित किया गया

• वर्ष 2008-09 से वर्ष 2015-16 की अवधि के दौरान राजस्थान मिलियन हेक्टे यर ) , ' बिहार ' ( 0-11 मिलियन हेक्टेयर ) , ' उत्तर प्रदेश ' ( 0-10 मिलियन हेक्टेयर ) , आन्ध्र प्रदेश ' 0-08 मिलियन हेक्टेयर ) ' मिजोरम ' ( 0-057 मिलियन हेक्टेयर ) , मध्य प्रदेश ( 0-039 मिलियन हेक्टेयर ) , ' जम्मूकश्मीर ' ( 0-038 मिलियन हेक्टेयर ) तथा ' प . बंगाल ' ( 0-032 मिलियन हेक्टेयर ) में बंजर भूमि में सकारात्मक बदलाव आया है , इन क्षेत्रों में अधिकांशतः बंजर भूमि को ' फसली भूमि ' ( 0.64 मिलियन हेक्टेयर ) , ' वन सघन ' / ' खुला ' ( 0-28 मिलियन हेक्टे यर ) , ' वन वृक्षारोपण ( 0-057 मिलियन हेक्टेयर ) तथा ' औद्योगिक क्षेत्र ' ( 0.035 मिलियन हेक्टेयर ) में बदल दिया गया , 

न्यूनतम बंजर भूमि वाले 5 राज्य ( 2015-16 ) 


रेक    राज्य    क्षेत्रफल ( वर्ग किमी )

  1        पंजाब      462.37 2 

  2           गोवा      515.60 

   3         त्रिपुरा     920.52 

  4       प . बंगाल   1654.99 

  5        हरियाणा     1658.96 

सर्वाधिक बंजर भूमि वाले 5 राज्य ( 2015-16 )

 रैंक      राज्य          क्षेत्रफल ( वर्ग किमी ) 

  1      जम्मू - कश्मीर    175697.01

2            राजस्थान       78851.33

3           मध्य प्रदेश      39536.62 

4              महाराष्ट्र     36075.15 

5         आन्ध्र प्रदेश      23981.74


 बंजर भूमि की श्रेणियाँ

बंजर भूमि की श्रेणियाँ पारम्परिक रूप से बंजर भूमि को ' वनस्पति उत्पादन योग्य ' तथा ' वनस्पति उत्पादन अयोग्य भूमि में बाँटा जा सकता है , वनस्पति उत्पादन योग्य बंजर भूमि यद्यपि वनस्पति विकास की क्षमता रखती है मगर कटाव , जल भराव , लवणता , आर्द्रता इत्यादि कारणों से उसमें उत्पादन व विकास नहीं किया जा सकता , कृषि या वनस्पति विकास के लिए अनुपयुक्त बजर भूमि दरअसल ऐसी भूमि है जिसे वनस्पति आवरण के लिए विकसित करना सम्भव ही नहीं होता , जैसे - ग्लेशियर , चट्टानें तथा रेतीले टीले इत्यादि , प्रभावकारी कारकों के आधार पर बंजर भूमि को निम्न प्रकार से विभाजित किया जा सकता है- ( 1 ) वाहित जल बंजर भूमि ( कटाव अपरदन युक्त , नालिका अपरदन , लवणीय मिट्टी वाली भूमि , दलदली , जल जमाव व जल कटाव तथा क्षारीय ) , ( 2 ) पवन प्रभावित बजर भूमि ( रेतीले टीले . तटीय क्षेत्र , बालू ) , ( 3 ) मानव प्रभावित बंजर भूमि ( खनन - उत्खनन , स्थाना न्तरित कृषि तथा औद्योगिक बंजर भूमि ) तथा ( 4 ) अन्य बंजर भूमि ( भू - क्षरण / भू - स्खलन क्षेत्र , उथली या पठार मृदा )


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