विश्व के सात महान आश्चर्य विश्व के सात अद्भुत आश्चर्य , जिनमें कुछ प्राकृतिक और कुछ इंसानों द्वारा बनाई गई संरचनाओं का संकलन है ।

विश्व के सात महान आश्चर्य विश्व के सात अद्भुत आश्चर्य 


विश्व के सात महान आश्चर्य विश्व के सात अद्भुत आश्चर्य , जिनमें कुछ प्राकृतिक और कुछ इंसानों द्वारा बनाई गई संरचनाओं का संकलन है । हैरान कर देने वाली और मन में जिज्ञासा उत्पन्न करती इन धरोहरों को संजोया जाता रहा है । वर्ष 2000 में स्विस फाउंडेशन ने विश्व के सात अजूबों के चुनाव के लिए न्यू सेवन वंडर्स ' के नाम से एक कैम्पेन शुरू किया , जिसमें पूरे विश्व भर से सात अजूबों को विजेता चुना गया ।

 सन 1999 में सबसे पहले विश्व के सात अजूबों को चुनने की शुरुआत नया फाउंटेशन बनाया गया और एक नई साईट बनाई गई । वोटिंग और इंटरनेट के माध्यम से 7 जुलाई 2007 में पुर्तगान में वार्ड के रोशन बहस को घोषणा की गई , कैनेडियन - स्थिस बनाड पेवर के नेतृत्व में एक सर्वेक्षण के बाद दुनियाभर में इस संगठन द्वारा पोल में एक सौ मिलियन पोट डाले गए में इन पंटर्स को लगभग 200 धरोहरों की लिस्ट में से चना गया था इसी तरह की कई सुचियां मध्ययुगीन व आधुनिक विश्व के लिए भी तैयार की गई है दुनिया के ये सात अजूबे अपने निर्माण और लोगों में लोकप्रियता को वजह से इस मुकाम तक पहुंचे हैं । तो आए , जानते है इनके बारे में 

1 ताजमहल:-

प्रेम का प्रतीक ताजमहल 

भारत का या अजूया उत्तर प्रदेश के आगरा में सदियों से प्रेम के प्रतीक स्वरूप अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए जाना जाता है । पूरी दुनिया को अपने आकर्षण से मोहित करता यह स्मारक मुगल पास्तुकला की उत्कृष्टता को दर्शाता है मुगल समाट शाहजहां और उनकी पत्नी ममताज महल के प्रेम की निशानी ताजमहाल के आगे आज की पीढ़ी भी सर झुकाती है । 

शाहजहां ने इस खूबसूरत स्मारक को बनवाने के लिए दुनिया के बेहतरीन कारीगरों को आमंत्रित किया था । वे अपनी पत्नी के नाम पर एक ऐसी भव्य आलीशान ईमारत का निर्माण चाहते थे जो सदियों तक सबको पसंद आती रहे । ताजमहल को बनाने के लिए सफेद संगमरमर का प्रयोग किया गया । 1631 में निर्मित यह इमारत यमुना नदी के किनारे स्थित है । 

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यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत के रूप में इसे चिह्नित किया गया और 2007 में इसे दुनिया के सात अजूबों में चुना गया । इसके निर्माण में लगभग 22 वर्षों का समय लगा और लगभग बीस हजार कारीगरों ने भारतीय , मुस्लिम और पारसी कला आदि के मिश्रण से इसे तैयार किया । इसके मुख्य कक्ष में शाहजहां व मुमताज की

सुंदर ढंग से सजी कब्रे हैं । यह मकबरा 41 एकड़ में फैला है । इसके चारों कोनों पर 40 मीटर ऊंची मीनारे हैं , जो हल्की सी बाहर की ओर झुकी हुई हैं । कहा जाता है कि जब ताजमहल पूरी तरह से बन कर तैयार हो गया तो शाहजहां ने सभी कारीगरों के हाथ कटवा दिये , क्योंकि वह नहीं चाहता था कि ताजमहल जैसी ईमारत दोबारा बने । ताजमहल को शब्दों में परिभाषित करना कठिन है , क्योंकि इसका सौंदर्य अप्रतिम है । इसके अतिरिक्त आगरा शहर में अन्य कई दर्शनीय स्थल भी हैं , जैसे- आगरा का किला , फतेहपुर सीकरी , अकबर का मकबरा , जामा मस्जिद , मेहताब व अंगूरी बाग और ताज म्यूजियम आदि ।

द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना :-

चीन की इस विशाल दीवार को शत्रुओं से देश की सुरक्षा हेतु बनाया गया था । यूनेस्को ने 1987 में इसे विश्व की धरोहर सूची में शामिल किया था । यह मानव निर्मित एकमात्र संरचना है , जिसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है । चीन की इस विशाल दीवार को चीनी भाषा में ' वान ली छांग छंग ' कहा जाता है । इस दीवार की ऊंचाई एक समान नहीं है । यह कहीं से 9 फुट तो कहीं से फीट ऊंची है । शत्रुओं पर नजर रखने के लिए इस पर कई जगह मीनारें भी बनाई गई थीं । इस दीवार की चौड़ाई इतनी अधिक है कि एक साथ 5 घुड़सवार या 10 पैदल सैनिक एक साथ गश्त लगा सकते हैं । 

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कहा जाता है कि इसे बनाने में 20 लाख मजदूर लगे , जिसमें से दस लाख ने अपनी जान गंवा दी और उन्हें दीवार के नीचे ही दफना दिया गया । यही वजह है इस दीवार को सब से बड़ा कब्रिस्तान भी कहा जाता है । 

इसके अतिरिक्त चीन में घूमने के लिए कैंटन टॉवर , ली नदी , पीला पर्वत , स्वर्ग का मंदिर , मोगाओ गुफा आदि जैसी जगहों का चुनाव भी किया जा सकता है । सर्वेक्षण के अनुसार चीन की विशाल दीवार अपनी सभी शाखाओं सहित हजारों किलोमीटर तक फैली हुई है । 1970 में इसे आम पर्यटकों के लिए खोल दिया गया था । इस दीवार के बारे में प्रचलित है कि इसकी ईंटों को जोड़ने के लिए चावल के आटे का इस्तेमाल हुआ था ।

ऐतिहासिक स्थल माचू पिच्चू :-

दक्षिणी अमेरिका के पेरू में स्थित यह ईका सभ्यता से संबंधित एक ऐतिहासिक स्थान है । यह उरूबाम्बा घाटी में एक पर्वत पर स्थित है । 1911 में एक अमेरिकी इतिहासकार हीरम बाघम ने इस स्थान की खोज की और तब से माचू पिचू एक पर्यटन स्थल बना । इसे 1981 में पेरू का ऐतिहासिक देवालय घोषित किया गया । इसके निर्माण में पालिश किए चमकीले पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था । कहा जाता है कि पहाड़ की चोटी पर महायाजक और स्थानीय कुमारियों का निवास था ।

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 हर सुबह सूर्योदय से पूर्व वे माचू पिच्चू आते व लोगों को एक नई सुबह का संकेत देते थे । इसके तीन प्रमुख मंदिरों में एक चंद्रमा का मंदिर भी है । माचू पिच्चू में कोंडोर मंदिर , त्रिवातायन मंदिर , अधूरा मंदिर , मुख्य मंदिर और सूर्य मंदिर भी स्थित है । कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते माचू पिच्चू को पर्यटकों के लिए फिलहाल बंद कर दिया गया है । यहां बचे हुए खंडहर इंका सभ्यता के अवशेष स्थल हैं । 1450 ई . के आसपास इंकाओं ने इस जगह का निर्माण किया था । इसके एक सौ सालों बाद जब स्पेनियों ने इन पर विजय पा ली तो वे हमेशा के लिए इस जगह को छोड़ कर चले गए । 

तब से अब तक इस वीरान शहर के खंडकर ही बचे हैं । इसके निर्माण को लेकर आज भी रहस्य बरकरार है । कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस जगह का प्रयोग इंसानी बलि के लिए किया जाता था । यहां मिले कई कंकाल महिलाओं के ही हैं जिससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि इंका लोग सूर्यदेव को अपना भगवान मानते थे , उन्हें खुश करने के लिए शायद कुंवारी महिलाओं की बलि दी जाती थी , लेकिन पुरुषों के कंकाल भी बाद में मिले . जिस कारण इस तथ्य को नकार दिया गया । 

रोमन कोलोसियम

 इटली ( रोम में ) रोमन साम्राज्य का सबसे विशाल एलिप्टिकल एम्फीथिएटर है , जिसे ' पलावियन एम्पीथिएटर ' भी कहा जाता है , रोमन इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर का उत्कृष्ट निर्माण माना जाता है इसका निर्माण योद्धाओं को प्रशिक्षण देने के मकसद से किया गया था । कोलोसियम में योद्धा अपनी युद्धकला का प्रदर्शन करते थे और समय - समय पर यहां पर जंगली जानवरों की प्रदर्शनियों भी लगती थीं अफ्रीका से शेर , हाथी व शुतुरमुर्ग लाए जाते थे , जिस वजह से लोगों के आवागमन से व्यापार को भी बढ़त मिली । 

कोलोसियम के पास ही ग्लेड्स मेग्नस भवन था , जो योद्धाओं का प्रशिक्षण क्षेत्र था और यह कोलोसियम से भूमिगत रास्ते द्वारा जुड़ा हुआ था । यहां योद्धा जानवरों से लड़ने का अभ्यास करते थे । हथियार रखने और घायल सैनिकों की चिकित्सा के लिए अलग भवनों की व्यवस्था भी यहाँ थी । कुल मिलाकर इसका प्रयोग एक किले की तरह किया जाता था , परंतु 16 वीं व 17 वीं शताब्दी में इस स्थान को ईसाई धर्म का पवित्र स्थान माना जाने लगा । पोप पाइअस का मानना था कि यह स्थान शहीदों के लहू से पवित्र हो गया है । धीरे - धीरे इस जगह का धार्मिक महत्त्व बढ़ता चला गया । 

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रोम में कोलोसियम को लेकर एक लोकोक्ति बहुत प्रचलित थी कि जब तक कोलोसियम है , तब तक रोम है , जिस दिन यह गिर गया उसी दिन रोम भी खत्म हो जाएगा व साथ ही दुनिया का भी अंत होगा । इसके बाद प्राकृतिक आपदाओं को सहते हुए आज यह इमारत खंडहर होती जा रही है लेकिन पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण के रूप में इसे संजोया जा रहा है । 

रोमन साम्राज्य के वैभव का प्रतीक 2014 में आम जनता के लिए खोल दिया गया था । इस स्टेडियम की खास बात यह थी कि यहां पचास हजार लोगों के बैठने का इंतजाम था रोमन लोग योद्धाओं की खूनी लड़ाइयां देख कर अपना मनोरंजन करते थे इसके अलावा यहां पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटकों का मंचन भी किया जाता था । इसके आसपास घूमने के लिए और भी कई दर्शनीय स्थल हैं , जैसे- द ट्रेवी फाउंटेन , गलेरिया बार्गीज , प्लेटिन हिल , स्पेनिश स्टेप्स , पैंथन , रोम फोरम आदि । 

क्राइस्ट द रिडीमर स्टेच्यू 

ब्राजील के रियो डी जेनेरो में ईसा मसीह की प्रतिमा जिसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आर्ट डेको स्टेच्यू माना जाता है । यह प्रतिमा 130 फीट लंबी और 98 फीट चौड़ी है । तिजुका फारेस्ट नेशनल पार्क में कोर्कोवाडो पर्वत की चोटी पर स्थित इस ऊंची मूर्ति से पूरा शहर दिखाई पड़ता है । रियो और ब्राजील की पहचान बन चुकी यह प्रतिमा मजबूत कंक्रीट और सोपस्टोन से निर्मित है , जिसका निर्माण 1922 और 1931 के बीच किया गया था । 

1850 में पहली बार एक कैथोलिक पादरी पेड्रो मारिया बॉस ने राजकुमारी ईसाबेल से एक विशाल धार्मिक स्मारक बनवाने हेतु धन देने का आग्रह किया था लेकिन बात आगे ना बढ़ सकी । तब 1921 में रियो के कैथोलिक सर्कल द्वारा इसे निर्माण के लिए दान राशि और हस्ताक्षर जुटाने के लिए एक कार्यक्रम ' सेमाना डू मोनुमेंटो ' आयोजित किया गया ।

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ईसामसीह की प्रतिमा के लिए चुने गए डिजाइनों में खुली बांहों के साथ क्राइस्ट द रोडीमर को प्रतिमा को चुना गया । स्मारक तक पहुंचने के लिए हर आधे घंटे के बाद ट्रेन चलती है , जो 20 मिनट में आपको शहर से स्मारक पहुंचाती है । आप पैदल चढ़ाई भी कर सकते हैं । पुराने समय का एक ट्राम ( लगभग 100 वर्ष पुराना ) अभी भी शहर के निचले व ऊपरी हिस्सों को जोड़ता है इसमें यात्रा बेशक धीमी होगी लेकिन आप शानदार दृश्यों को देख सकते हैं 

पैत्रा एक ऐतिहासिक नगरी 

जार्डन के अमान प्रांत में स्थित यह प्राचीन शहर ' बेक्का ' और ' पैत्रा ' के नाम से मशहूर है । पैत्रा 6 ) पैत्रा नगरी या पेटा को 312 ईसा पूर्व नायातियन लोगों द्वारा स्थापित किया गया था । उस समय में यह 20,000 नाबातियन आबादी वाला शहर था । पेट्रा मृत सागर और लाल सागर के बीच स्थित है । 

363 ई . में भूकंप से आधा शहर खत्म हो गया था । इसके साथ पेट्रा पर कई आक्रमण भी हुए , जिसके कारण 11 वीं शताब्दी के अंत तक इसके कई महलों का विनाश हो गया । 1812 में एक स्विस शोधकर्ता जोहान लुडविग बहार्ट ने इसे दोबारा खोज निकाला । कहा जाता है कि अभी यह 15 प्रतिशत ही खोजा गया है , 85 प्रतिशत अभी भी जमीन के भीतर है । पेट्रा की खुदाई 1929 में की गई थी और 1985 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर में शामिल करने के बाद इसे ' मनुष्य की पारंपरिक विरासत की सबसे महंगी पारंपरिक संपत्ति ' कह कर परिभाषित किया ।

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 इस शहर को कई पहाड़ों को चट्टानों में स्थापित किया गया है और यहां के पत्थरों के लाल रंग की वजह से ही पेट्रा को ' रोज सिटी ' के नाम से भी जाना जाता है । इस शहर के अंदर जाने के लिए एक किलोमीटर की संकीर्ण घाटी से गुजरना पड़ता है । पेट्रा मूर्तियों , कब्रों , स्मारकों और पवित्र संरचनाओं का एक भव्य शहर है । यहां 800 के लगभग नक्काशी की हुई कब्र हैं । 

इसके आसपास एक पुरातत्व पार्क भी है । दरअसल पेट्रा एक प्रसिद्ध पुरातन स्थल है , जो 300 ईसा पूर्व नाबाटन साम्राज्य की राजधानी था यह शहर वास्तुकला और पानी की वाहन प्रणाली के लिए विख्यात है । इस पूरे इलाके में पानी के तालाब , भंडारन और सिंचाई प्रणाली के अवशेष आज भी मिलते हैं ।

चिचेन इत्जा

 चिचेन इत्जा यह विश्व के सात अजूबों में से एक है । मध्य अमेरिका में स्थित यह मंदिर पुरानी माया सभ्यता से संबंधित है । शहर के बिलकुल बीच में ' कुकुलकन ' मंदिर है , जिसकी ऊंचाई 79 फीट तक है और चिचेन इत्ज़ा की चारों दिशाओं में 91 सीढ़ियां हैं । प्रत्येक सीढ़ी को एक दिन का प्रतीक माना गया है और ऊपर बना चबूतरा 365 वां दिन का प्रतीक है । यह मैक्सिको के सबसे संरक्षित पुरातन स्थलों में एक है । यह पिरामिड संरचना अपने डिजाइन के साथ - साथ कैलेंडर निर्माण के लिए भी अद्वितीय है । एक साल में दो बार की आकृति बनाते हुए पिरामिड पर एक छाया का गिरना हर किसी को हैरान कर देता है । 

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यह पिरामिड अजीब आवाजों के लिए जाना जाता है । यहाँ पर एक ' ला इग्लेसिया ' नामक चर्च है , जो यामितीय आकृति से सज्जित है । विश्वभर के ये आश्चर्यचकित कर देने वाले सात अजूबे प्राकृतिक और इंसान द्वारा निर्मित संरचनाओं का संग्रह हैं । 

प्राचील काल से लेकर आज के वर्तमान समय तक विश्व के अनेकों आश्चर्यों की सूची तैयार की गई , जिनमें इन सात अजूबों के अतिरिक्त अन्य कई संरचनाएं भी शामिल की गई , जिन्हें धरोहर के रूप में संकलित किया गया है , जैसे कि हैंगिंग गार्डन ऑफ बेबीलोन , स्टेच्यू ऑफ जीजेस एट ओलंपिया , टेंपल ऑफ आर्टीमीज़ , लाईट हाउस ऑफ एलेक्जेंडरिया , ग्रेट पिरामिड ऑफ गीजा , स्टेच्यू ऑफ यूनिटी , माऊसोलस का मकबरा और 630 विशालमूर्ति आदि । इन सबकी सूची बहुत ही लंबी है , लेकिन हमें गर्व है हमारी विरासत पर।

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